हिंदी आशुलिपि-ऋषि प्रणााली
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हिंदी आशुलिपि-ऋषि प्रणााली

Updated: Nov 29, 2022

आशुलिपि – एक परिचय (ऋषि प्रणाली)

जिन ध्वनि संकेतों द्वारा हम अपने विचार प्रकट करते हैं उसे भाषा कहते हैं। इनको सुनने के पश्चात जिन संकेतों द्वारा हम इनको लिखते हैं उसे लिपि कहते हैं। सुनकर समझने और उसे लिखने में बड़ा अंतर होता है। जितनी जल्दी हम सुन सकते हैं उतनी जल्दी उन्हें हम अपने वर्तमान लिपि में लिख नहीं सकते। इसीलिए यह आवश्यकता प्रतीत हुई कि कोई ऐसा उपाय ढूँढना चाहिए जिससे जितनी जल्दी हम सुनते हैं उतनी ही जल्दी हम लिख भी सकें। इस नई लिपि को ‘हिन्दी की शीघ्र लिपि’, ‘त्वरा लिपि’ अथवा संकेत लिपि कहते हैं या फिर शॉर्टहैंड भी कह सकते हैं।

प्रशिक्षार्थियों के लिए निर्देशः –

हिंदी आशुलिपि विज्ञान एक ऐसा विषय हैं, जिसमें भाषा के सभी अवयव अर्थात ध्वनि, उच्चारण, वर्ण, शब्द, अर्थ तथा वाक्य आदि समाहित रहते हैं। अतः जिस भाषा की भी आशुलिपि सीखें, सर्व प्रथम उस भाषा का वांछित ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। आशुलेखन के बाद उसके शुद्ध लिप्यंतरण करने की क्षमता ही एक अच्छे आशुलिपिक/रिपोर्टर की पहचान है। इसके लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है।


1. भाषाः – आशुलिपिक/रिपोर्टर का मुख्य कार्य गति से आशुलेखन के बाद उसका तुरंत लिप्यंतरण करना है और यह कार्य गति और शुद्धता से तभी किया जा सकता है जब संबंधित भाषा के वाक्य-विन्यास, अर्थ, वर्तनी आदि का पूरा ज्ञान हो। अतः जिस भाषा की भी आशुलिपि आप सीख रहे हैं उस भाषा में दक्षता बढ़ाने का निरंतर प्रयास करें।

2. आशुलिपि सिद्धांतः – आशुलिपि के सिद्धांतों को पूरी तरह समझते हुए उनके प्रयोग में दक्षता लाने के लिए उनका अध्ययन करने के साथ-साथ व्यवहारिक अभ्यास भी करें। इसके लिए पुस्तक में दिए गए उदाहरणों को बार-बार दोहराने आवश्यक है।


3. रेखाक्षरों में समानताः – आशुलिपि सीखते समय प्रारंभ से ही प्रयास करें कि सभी रेखाक्षरों की लंबाई समान रहे तथा उनकी लिखने की दिशा और कोण का विशेष रूप से ध्यान रखा जाए। गहरी और हल्की रेखाएं बनाने का प्रयास भी आरंभ से ही करना चाहिए।


4. शब्द चिह्नः – प्रत्येक भाषा में कुछ शब्द बार-बार अर्थात् बहुतायत से प्रयुक्त होते हैं तथा उनके रेखाक्षर अन्य अनेक शब्दों के रेखाक्षरों के समान बनते हैं जिस कारण जहाँ एक ओर उन्हें लिखने में अधिक समय लगता है वहीं दूसरी और समाने रेखाक्षरों के कारण भ्रांति भी होती है। इस असुविधा से बचने के लिए आशुलिपि में इनके लिए निश्चित चिह्न बनाए गए हैं जिन्हें शब्द-चिह्न कहते हैं।


5. शीघ्र याद करने की कला – आशुलिपि उच्चारण पर आधारित है। गति से लिखना तभी संभव होगा जब आशुलिपिक/रिपोर्टर प्रत्येक शब्द के उच्चारण को ठीक प्रकार समझे। अतः अभ्यास करते समय यह आवश्यक है कि आप स्वयं भी शब्द को मुंह से उच्चारित करते हुए लिखें


6. लेखन सामग्रीः – आशुलिपि लिखते समय आरंभ से ही पैंसिल का प्रयोग करना चाहिए ताकि हल्के और गहरे रेखाक्षरों को लिखने में आसानी हो। पैंसिल को हल्के से पकड़ना चाहिए। अंगूठे, तर्जनी और मध्यमा अंगुलियों से पैंसिल पकड़ना एक अच्छी स्थिति है। अच्छी गति से लिखने का अभ्यास हो जाने के बाद आप कलम से भी लिख सकते हैं।


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